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नीतीश व अजित के चुनावी गठबंधन से समाजवादी पार्टी में बेचैन!

pd logलखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल व जनता दल (जदयू) के बीच घटती दूरियों को देख के समाजवादी पार्टी में बेचैनियां शुरू हो गई है। इन दोनों पार्टियों के गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी का होगा। नीतीश व अजित का चुनावी गठबंधन अभी भले ही प्रभावी न दिखाई दे रहा हो लेकिन पश्चिमी उप्र और कुर्मी बहुल क्षेत्रों में जीत हार में ये गठबंधन अहम भूमिका अदा कर सकता है। बता दें कि पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में रालोद नौ सीटों पर कामियाबी मिली थी। उस समय जदयू को भले ही कोई खास सफलता न मिली हो लेकिन बिहार में फिर मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार का प्रभाव आज उप्र में पहले से अधिक है। जो समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है।

वहीं इस गठबंधन से मुस्लिम वोटों का समाजवादी पार्टी से कटान संभव है। रालोद प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मसूद अहमद का कहना है कि चौधरी चरण सिंह व डॉ. लोहिया के अनुयायी एकजुट होंगे तो उप्र के सियासी हालात बदलेंगे। इस गठजोड़ में मुस्लिमों का जुड़ाव स्वाभाविक तौर से होगा।

लोहिया व चरणसिंह के अनुयायियों को एक मंच पर लाकर साझा मोर्चा बनाने की कोशिशें चार अक्टूबर को बड़ौत में निर्धारित रैली से परवान चढ़ेंगी जहां पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की मूर्ति के अनावरण कार्यक्रम में दिग्गज एक ही मंच पर होंगे।

चौधरी चरणसिंह की स्मृति में आहूत रैली में शामिल होने के लिए रालोद ने बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार, शरद यादव, केसी त्यागी, झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी व बहुजन स्वाभिमान संघर्ष समिति मुखिया आरके चौधरी समेत कई प्रमुख नेताओं को न्यौता भेजा है।

रालोद द्वारा जयंत चौधरी को मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाने के फैसले से सपा से नजदीकी होने की राहें बंद होती दिख रही हैं। रालोद प्रमुख अजित सिंह सभाओं के जरिए प्रदेश और केंद्र सरकारों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। अजित सिंह का कहना है कि किसानों में परिवर्तन की ललक अधिक है क्योंकि गत दिनों सरकारी नीतियों से गांव, गरीब और कमजोरों को सर्वाधिक नुकसान हुआ है।