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देश में छिपे गद्दारों को कुचलने का वक़्त आ गया है

पिछले दिनों रविवार की एक सर्द शाम को शहर इंदौर में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया, विषय था “स्वतंत्रता बनाम स्वच्छंदता” और मुख्य वक्ता थे मेजर गौरव आर्य। मेजर गौरव आर्य को हमने अक्सर टीवी डिबेट्स में देखा है।

अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए मेजर गौरव आर्य ने कहा कि आप लोग यहाँ बैठे हैं क्योंकि वहाँ बॉर्डर पर -20 डिग्री में कोई आपकी जान के लिए अपनी जान लुटाने को तैयार बैठा है। आप चैन से सो सकें इसलिये कोई रात भर जागेगा। कोई शायद कल सुबह का सूरज भी नहीं देख पायेगा। पूरी दुनिया में सिर्फ भारतीय सेना ही एक ऐसी सेना है जो कभी ग़लत काम को अंजाम नहीं देती है और न ही बिना कारण किसी को कोई नुकसान पहुंचाती है। हमारी सेना एक सच्ची सेना है।

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मेजर आर्य ने बेहद गंभीर बात सामने रखी वो ये कि दिल्ली में और देशभर में ऐसे कई लोग, संस्थाएँ, NGOs हैं जिनका काम है सेना के या सुरक्षा बलों द्वारा मारे जा रहे आतंकियों के समर्थन में याचिकाएँ लगाना, सुरक्षा बलों को कोर्ट में घसीटना। ये वो लोग हैं जो मानवाधिकार के नाम पर सिर्फ आतंकवादियों, अपराधियों की ही तरफदारी करते हैं। दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ भारत तेरे टुकड़े होंगे, हम लेकर रहेंगे आज़ादी जैसे नारे लगाने वालों के साथ यहाँ का मीडिया और यहाँ की राजनीतिक पार्टियाँ खड़ी हो जाती हैं उनको हीरो बनाकर पेश करती है।

उन्होंने आगे कहा यहाँ कई यूनिवर्सिटीज़ में सीमा पर और नक्सलियों द्वारा सुरक्षा बलों के जवानों, सेना के जवानों के शहीद होने पर जश्न मनाया जाता है। कौन है इनके पीछे और कौन इनको फंडिंग करता है? एक बड़ी फंडिंग विदेशों से आती है, कश्मीर में NIA ने नकेल कसी तो पत्थरबाजी बंद हो गई। पहली बार सेना खुले हाथ से दुश्मनों पर टूट पड़ी है, जिसका नतीजा है कि 200 से ज़्यादा आतंकी कश्मीर में मार दिए गए। लेकिन असल मुद्दा वही है कि देश में ऐसी विचारधारा किसने फैलाई और कौन इसके पीछे है? अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर आतंकियों के साथ, भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाने वालों के साथ खड़े होने वाले लोगों को इस देश में कैसे रहने और बोलने की आज़ादी है? याक़ूब मेमन जैसे आतंकवादी के लिए बड़े बड़े वकीलों की फौज क्यों खड़ी हो जाती है? इनको कौन पैसा देता है क्यों एक आतंकवादी के लिए सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुलवा दी जाती है?

पूरी चर्चा के दौरान एक बात समझ आई कि सेना पर ऊँगली उठाने वाले, सेना, सीमा सुरक्षा बलों की शहादत का जश्न मनाने वाले ये लोग अचानक पैदा नहीं हुए ये बरसों से मौजूद हैं लेकिन इनकी पहचान अब सामने आई है। पहचान सामने आने के बाद से ये लोग दहशत में भी हैं। लेकिन अब इन लोगों को कुचलने की ज़रूरत है। ऐसे लोग हमारे बीच ही मौजूद हैं। ये गद्दार आतंकियों से भी ज़्यादा घातक हैं क्योंकि ये अध्यापक, प्रोफेसर, वकील, पत्रकार, कलाकार, लेखक के रूप में हमारे सामने हैं। ये खुद लोगों की हत्याएँ नहीं कर रहे लेकिन हत्या करने वालों की मदद कर रहे हैं उन्हें उकसा रहे हैं, उनके लिए तन मन धन से खड़े हो रहे हैं। अब इनको असहिष्णुता वास्तव में दिखाए जाने की ज़रूरत है इनको गलियों में, सड़कों पर दौड़ा दौड़ाकर पीटे जाने की ज़रूरत है, ये लातों के भूत हैं जो बातों से नहीं मानेंगे।

कल ही रात को रिपब्लिक टीवी पर देखा जज लोया की मृत्यु की जाँच के मामले में याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति से जब पूछा गया कि आपने जो वकील इस काम के लिए लिया है उसकी फीस किसने दी और कितनी फीस दी? इस सवाल पर याचिकाकर्ता बगलें झाँकने लगा, उसका गला सूख गया, यहाँ तक कि उसने जिस आधार पर याचिका दायर की थी वो भी झूठी थी।

ऐसे अनेक मामले हैं जो हमारी जानकारी में नहीं हैं लेकिन ऐसे लोगों की ये पूरी गैंग है जो पूरी तरह से एकजुट है। ये केकड़े बरसों से इस देश की नींव को, इसकी आत्मा को, इसकी वीर, जाँबाज़ सेना और सुरक्षा बलों को भीतर ही भीतर खोखला करने में जुटे हुए हैं।

कल सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी स्टोरी देखकर एक बार फिर सीना गर्व से चौड़ा हो गया। देश के इन जाँबाज़ सैनिकों ने पूरी दुनिया में अपनी वीरता, साहस और सूझबूझ का परचम लहरा दिया।

अंत में… कुछ तो इस सरकार ने ऐसा किया है जो ये सारे केकड़े बिलबिलाते हुए बिलों से बाहर आ रहे हैं। कोई राष्ट्र रातोंरात या 2-4 वर्षों में नहीं बन जाता और ये तो  वर्षों से लूटे गए, छले गए, तहस नहस किये गए राष्ट्र के पुनर्निर्माण का मामला है इसमें वक़्त लगेगा, त्याग, बलिदान भी लगेगा। जिन्हें सस्ता पेट्रोल, सस्ता प्याज, आरक्षण, जातिवाद चाहिए वो बेशक इन केकड़ों के हाथों अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ी को ख़तम करवाने को स्वतंत्र हैं और जिन्हें लगता है कि आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित, उज्ज्वल भारत देना है वो तमाम तकलीफों के बावजूद अपने निर्णय पर अडिग रहेंगे।