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जानिए अयोध्या केस में तारीख दर तारीख कब-कब क्या हुआ

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद की सुनवाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट आज तय करेगा कि क्या इस मामले की सुनवाई रोजाना होगी या नहीं. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ करेगी. इससे पहले इस मामले की आखिरी सुनवाई 5 दिसंबर, 2017 को हुई थी. सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.अब्दुल नजीर भी हैं.

कई भाषाओं में हुआ दस्वावेजों का अनुवाद

राम मंदिर मामले के लिए हज़ारों पन्नों के दस्तावेजों का सात अलग-अलग भाषाओं और लिपियों में अनुवाद कर लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसम्बर को हुई पिछली सुनवाई के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश सरकार ने 53 खंडों में तमाम दस्तावेज़ों के अनुवाद कर लिए हैं. ये दस्तावेज़ संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, पालि, उर्दू सहित सात भाषाओं या लिपियों में हैं.

सूत्रों की मानें तो शिया वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट से मांग करेगा कि मुख्य मामले की सुनवाई से पहले उसकी उसकी याचिका पर सुनवाई की जाए. अपनी याचिका में शिया वक्फ बोर्ड ने निचली अदालत द्वारा 30 मार्च, 1996 को दिए उस फैसले को चुनौती दी है जिसके तहत ज़मीन का मालिकाना हक सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया गया था.

यूपी सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड इस बाबत कुछ हिंदू संगठनों के संपर्क में है. बोर्ड चाहता है कि कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई के दौरान ये संगठन उसका साथ दें. शिया वक़्फ़ बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक इस याचिका पर कोर्ट का फैसला उनके हक में आ जाता है तो मुख्य मामले की सुनवाई की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि वो विवादित जमीन पर से अपना मालिकाना हक छोड़ने के लिए तैयार है. वो भी इस शर्त के साथ कि जन्मस्थान पर राम मंदिर बने और मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बने.

सिब्बल ने की थी मांग, 2019 चुनाव तक टले सुनवाई

पिछली सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने मांग की थी कि मामले की सुनवाई 5 या 7 जजों बेंच को 2019 के आम चुनाव के बाद करनी चाहिए. क्योंकि मामला राजनीतिक हो चुका है. सिब्बल ने कहा कि रिकॉर्ड में दस्तावेज अधूरे हैं. कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसको लेकर आपत्ति जताते हुए सुनवाई का बहिष्कार करने की बात कही थी.

तारीख दर तारीख जानें कब-कब क्या-क्या हुआ….

1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया. 1949 में बाबरी मस्जिद में गुप्त रूप से भागवान राम की मूर्ति रख दी गई. 1984 में मंदिर निर्माण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया.

1959 में निर्मोही अखाड़ा की ओर से विवादित स्थल के स्थानांतरण के लिए अर्जी दी थी, जिसके बाद 1961 में यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी बाबरी मस्जिद स्थल पर कब्जा के लिए अपील दायर की थी.

1986 में विवादित स्थल को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया. 1986 में ही बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया गया.

1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की. 1991 में रथयात्रा की लहर से बीजेपी यूपी की सत्ता में आई. इसी साल मंदिर निर्माण के लिए देशभर के लिए इंटें भेजी गई.

6 दिसंबर, 1992: अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था. इसके बाद हर तरफ सांप्रदायिक दंगे हुए. पुलिस द्वारा लाठी चार्ज और फायरिंग में कई लोगों की मौत हो गई. जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया. प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया.

16 दिसंबर, 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन किया गया.

1994: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ.

4 मई, 2001: स्पेशल जज एसके शुक्ला ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं से साजिश का आरोप हटा दिया.

1 जनवरी, 2002: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अयोध्या विभाग शुरू किया. इसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था.

1 अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी.

5 मार्च 2003: इलाहबाद हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का निर्देश दिया, ताकि मंदिर या मस्जिद का प्रमाण मिल सके.

22 अगस्त, 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई के बाद इलाहबाद हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश किया. इसमें कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे. इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चैलेंज किया.

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

26 जुलाई, 2010: इस मामले की सुनवाई कर रही इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित किया और सभी पक्षों को आपस में इसका हल निकाले की सलाह दी. लेकिन कोई आगे नहीं आया.

28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इसके तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा दिया गया. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला.

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. 21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही.

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया.

9 नवंबर 2017: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के बाद शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने बड़ा बयान दिया था. रिजवी ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनना चाहिए, वहां से दूर हटके मस्जिद का निर्माण किया जाए.

16 नवंबर 2017: आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता करने की कोशिश की, उन्होंने कई पक्षों से मुलाकात की.

5 दिसंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने 8 फरवरी तक सभी दस्तावेजों को पूरा करने के लिए कहा.