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जाट आरक्षण का कड़वा सच

yogendra-yadav (1)पिछले दो दिनों के हरियाणा से आ रही ख़बरों से मन बहुत ख़राब है। सरकार अक्षम है, आंदोलनकारी अनुशासनहीन है और विपक्ष गैर-जिम्मेदार है। सब मिलकर सीधा-सादा सच जनता से छुपा रहे हैं। अगर राज्य को अराजकता और हिंसा से बचाना है तो शुरुआत सच बोल कर करनी होगी।

सच ये है कि सभी पार्टियां जाटों को आरक्षण का झूठा वादा करती रही हैं। इस वादे को पूरा करना किसी के बस का नहीं है। सन 2013 में हरियाणा सरकार ने और सन 2014 में केंद्र सरकार ने बिना कायदे के जाटों को आरक्षण दिया था। सबको तभी पता था की ये आदेश कोर्ट में टिकेगा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र का आदेश रद्द कर दिया, हरियाणा सरकार से आदेश पर हाई कोर्ट ने स्टे दे रखा है। जब तक कोर्ट अपना फैसला नहीं बदलते तब तक सरकार आंदोलनकारियों को कुछ वे वादा करले, उसका कोई महत्व नहीं है। अगर सरकार आंदोलनकारियों को खुश करने के लिए अध्यादेश लाती भी है, तो वो भी कोर्ट में रुक जाएगा।

सच ये है कि मामला सिर्फ एक कोर्ट आर्डर का नहीं है। आज की कानूनी-संवैधानिक व्यवस्था में जाट और पटेल जैसी जातियों को आरक्षण देना संभव नहीं है। किसी भी जाति को ओबीसी में शामिल करने के लिए यह काफी नहीं हैं कि इसके बारे में पहले क्या धारणा थी, या की मंडल कमीशन ने क्या लिखा। अब इसका वैज्ञानिक सर्वे के आधार पर प्रमाण देना पड़ता है कि वह जाति आज शिक्षा और सरकारी नौकरी में सामान्य से बहुत पिछड़ गयी है। राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने यह सर्वे करवाया था, उसके मुताबिक जाट समाज की स्थिति उतनी पिछड़ी हुई नहीं है। इस प्रमाण के आधार पर आज के हालात में जाट समुदाय को ओबीसी आरक्षण जैसा कोई लाभ देना संभव नहीं है।

सच ये भी है कि साधारण जाट परिवार की आर्थिक दशा अच्छी नहीं है और वह आज की व्यवस्था में अन्याय का शिकार है। अधिकांश जाट गाँव में रहते हैं और खेतिहर हैं। खेती अब घाटे का धंधा बन गयी है। खेती की लागत और किसान के खर्चे बढ़ रहे हैं लेकिन फसलों के दाम बढ़ नहीं रहे। ऊपर से मौसम और बाजार की मार। अगर बच्चे को पढ़ा-लिखा दिया तो वो न खेती के लायक बचा न ही नौकरी के काबिल बना। ऊपर से हर नौकरी में सिफारिश और रिश्वत। यानी असली समस्या खेती के संकट और शिक्षित बेरोजगारी की है। इस असली समस्या का समाधान करने को कोई तैयार नहीं है। किसी के पास न तो समझ है, न हिम्मत। आरक्षण इस समस्या का समाधान नहीं है। इससे चंद पढ़े-लिखे और कांटेक्ट वाले परिवारों का भला हो सकता है, लेकिन ज्यादातर जाट परिवारों को इससे कोई फायदा नहीं है। बस इस सवाल पर साधारण लोगों की भावनाएं भड़काना आसान है।

सच ये है की जाट आरक्षण के नाम पर यही खेल हो रहा है। कोई अपनी लीडरी चमका रहा है, कोई मुख्यमंत्री की कुर्सी हिला रहा है, कोई अपनी पार्टी के वापिस आने का आधार बना रहा है। घबराई हुई सरकार अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मार रही है। सबको पता है की इससे कुछ हासिल नहीं होगा। पांच घरों के चिराग बुझ चुके हैं, और पता नहीं कितनों की बारी है। अब चुप रहने का वक्त नहीं है। कुछ लोगों को तो खुल कर सच बोलना चाहिए ताकि शांति लौट सके, सच्चे सवालों पर ध्यान दिया जा सके।

(योगेन्द्र यादव के फेसबुक वॉल से.)