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जमीन और पानी दोनों के लिए कारगर शिप के प्रॉजेक्ट में तेजी की तैयारी

insनई दिल्ली। हिंद महासागर से जुड़े इलाकों में चीन के बढ़ते दखल के मद्देनजर भारतीय नौसेना ने एलपीडी (लैंडिंग प्लैटफॉर्म डेक) प्रॉजेक्ट को तेज करने का फैसला किया है। एलपीडी ग्राउंड फोर्सेज को सपॉर्ट करने वाली वॉरशिप है और हेलिकॉप्टरों की लैंडिंग के लिए डेक का काम भी करती है। यह जलमार्ग से सैनिकों को युद्धक्षेत्र में पहुंचाने के काम आती है।

नौसेना के पास फिलहाल एक एलपीडी है, जो पहले अमेरिका की हुआ करती थी। अमेरिकी नौसेना ने 36 साल इस्तेमाल के बाद इसे भारत को दिया था। भारत ने इसे करीब 5 करोड़ डॉलर में खरीदा। इसका नाम आईएनएस जलाश्व रखा गया और भारतीय नौसेना में 2007 में इसे शामिल किया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएजी ने इतनी पुरानी शिप को जल्दबाजी में खरीदे जाने पर तब की यूपीए सरकार की खिंचाई की थी। कहा तो यह भी गया था कि अमेरिका ने इसे युद्ध में इस्तेमाल न करने और जब चाहे चेक करने की शर्त रखी थी। हालांकि अमेरिका ने इससे इनकार किया था। 2008 में इसकी सीवेज पाइप से जहरीली गैस लीक होने के कारण नौसेना के छह लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।

2004 में सूनामी के बाद और एलपीडी की जरूरत महसूस की गई। इसके बाद चार एलपीडी के लिए 2.6 अरब डॉलर के टेंडर 2013 में ही जारी किए गए थे। सूत्रों का कहना है कि इस प्रॉजेक्ट की टेक्निकल बिडिंग हाल में पूरी हो गई है और जल्द ही कमर्शल बिडिंग शुरू होने के आसार हैं। खास बात यह है कि टेक्निकल बिडिंग में दो भारतीय कंपनियों को चुना गया है, जो विदेशी कंपनियों के सहयोग से काम करने की इच्छुक हैं।
मेक इन इंडिया के तहत यह महत्वपूर्ण प्रॉजेक्ट है। माना जा रहा है कि ये कंपनियां दो एलपीडी बनाएंगी और बाद में दो एलपीडी बनाने में सरकारी कंपनी का सहयोग करेंगी। जो एलपीडी बनाने की योजना है, वे छह बैटल टैंक, 20 इन्फैंट्री युद्धक वाहन और 40 हेवी ट्रेक ले जाने में सक्षम होंगी। ये डिफेंस मिसाइल सिस्टम से भी लैस होंगी। 20 हजार टन की एलपीडी भारतीय यार्ड में बनने वाली बड़ी वॉरशिप में एक होगी। हर शिप में करीब 1400 लोग सवार हो सकेंगे। इनकी डिलीवरी पूरी होने में 10 साल का अनुमान लगाया जा रहा है।