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चुनावी महासमरः बाँदा में रोचक हुआ मुकाबला

सदर सीट से आ सकता है चौंकाने वाला परिणाम

सईद राईन
बाँदा सदर की चुनावी रणभूमि में जहाँ तीन महारथियों में सीधे टक्कर थी वहीं एक और महारथी ने प्रवेश कर चुनावी जंग को और रोचक बना दिया त्रिकोणीय की जगह चतुष्कोणीय संघर्ष हो गया। चारों अपने को जीत का प्रबल दावेदार मान रहे हैं किन्तु परिणाम एक के ही पक्ष में आना है।

जहाँ तीन प्रत्याशी राष्ट्रीय दलों से हैं वहीं चौथा प्रत्याशी एक नवोदित क्षेत्रीय दल से है। इस वजह से यह चुनावी युद्ध और अधिक रोचक होने वालाहै। जीत किसकी होगी यह भविष्य के गर्त में छिपा है लेकिन इतना जरूर है कि इन चारों प्रत्याशियों में काँटे की टक्कर होना तय है। वैसा तो लगभग पूरा उत्तर प्रदेश अभी जातिवादिता के मोह से उभर नहीं पाया। जाति ही यहाँ प्राथमिक है बाकी सब मुद्दे गौण हैं।

जाति के अलावा कुछ क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर भी छोटे क्षेत्रीय दलों ने भी अपनी पहचान बनायी है। रालोद, भासपा, अपना दल, पीस पार्टी के प्रत्याशियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में बड़े-बड़े दलों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर किया है और जीत हासिल कर विधानभवन का रुख भी किया है। पूरे प्रदेश में लाल रंग से ओत-प्रोत एक सौम्य क्रांति का आह्वान करते हुए सूबे के तमाम सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधत्व व उनके हित के उद्देश्य से बसपा के पूर्व दिग्गज नेता व अतिपिछड़ों के अग्रणी नेता बाबूसिंह के समर्थकों ने जनाधिकार मंच की स्थापना की। जिसको हाल ही में राजनीतिक पार्टी की मान्यता मिली और चुनाव आयोग ने कीप चुनाव चिह्न भी आवंटित कर दिया।

सूबे में कई विधानसभा क्षेत्र में अतिपिछड़े निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में बड़े-बड़े न्यूज चैनल भले इस नवोदित दल की शक्ति से अंजान हों पर परिणाम चौंकाने वाले जरूर होंगे। यहाँ पर इसका उदाहरण देना इसलिये भी समीचीन है कि इस दल के अग्रणी नेता बाबूसिंह कुशवाहा की मातृभूमि व कर्मभूमि भी इसी बाँदा जिला में है। जिसे सामंतवाद के चलते बीएसपी में 27 साल की सेवा का फल यह मिला की भ्रष्टाचार के आरोप में चार साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा। बदनामी का दाग कुछ सामंतों के चलते इस अतिपिछड़े नेता पर जबरन लगाया गया। किन्तु न्याय व्यवस्था पर विश्वास रख कर अपने समर्थकों से सदा शांत रहने का ही आह्वान किया है।

बाँदा सदर में इस बात का जिक्र इसिलये भी जरूरी हो गया है कि भाजपा से कई दिग्गज नेता कमल को छोड़कर जनाधिकार मंच में शामिल हो गये हैं। जिनमें से अधिकांश नेता वैश्य समाज से हैं, इस  विधानसभा में इनका वोटबैंक एक बड़ी भूमिका में है। बाँदा सदर में अलग-अलग दलों से पांच बार वैश्य समाज ने विधानभवन में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद से शायद ही किसी बड़े दल से किसी वैश्य को टिकट मिला हो।

बीजेपी में सालों से तन-मन-धन से लगे समर्पित कार्यकर्ताओं को यहाँ से टिकट न मिलना और दूसरे दल से आये व्यक्ति को टिकट मिलना ही यहाँ विरोध की वजह बन गयी। यहाँ कांग्रेस और बसपा इस अन्तर्विरोध से जरूर कुछ शकून पायी होगी पर भाजपा को करारा सामना करना पड़ा। किन्तु भाजपा से जनाधिकार मंच में शामिल प्रत्याशी समाजसेवी अजीत गुप्ता की प्रत्येक वर्ग में अच्छी खासी पकड़ है।

उच्च शिक्षा हासिल किये हुए अजीत गुप्ता की बाँदा को विकसित करने के लिये, यहाँ के लोगों के मन में रहने के लिये कई तकनीकि और योजनाएं भी बनाये हुए हैं। उनका मानना है कि राजनीति का सही मकसद क्षेत्र का विकास और क्षेत्रवासियों की सेवा है। यहाँ और एक बड़ी भूमिका में अतिपिछड़ी जातियाँ और मुस्लिम भी हैं इस वोटबैंक का बड़ा हिस्सा जनाधिकार मंच के पास है, ऐसे में इस नवोदित दल जनाधिकार मंच से प्रत्याशी बने अजीत गुप्ता भी बाँदा विधानसभा क्षेत्र में चतुष्कोणीय मुकाबले में बराबरी से मैदान में हैं।