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गोडसे के परिवार ने दिखाई RSS से करीबी रिश्तों की तस्वीर

godserssनई दिल्ली। RSS का चाहे जो कहना हो, लेकिन महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का परिवार मानता है कि वह संघ का कट्टर सदस्य था। गोडसे के परिवार का कहना है कि जीवन के आखिरी वर्षों में उसने भले ही RSS की आलोचना की हो, लेकिन हिंदुओं पर अत्याचारों के लिए हैदराबाद के निजाम के 1938 में विरोध में उसने RSS सदस्यों का साथ दिया था। नाथूराम गोडसे और वीर सावरकर के परिवार से जुड़े सात्यकी सावरकर ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि उनके परिवार ने नाथूराम और गोपाल गोडसे के सभी लेख संभालकर रखे हैं और उनमें से कुछ से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि नाथूराम गोडसे 1930 के दशक की शुरुआत तक RSS का समर्पित सदस्य था। इसके बाद वह संघ की कट्टरता में कथित तौर पर कमी आने की वजह से उससे कुछ दूर हो गया था।

सात्यकी ने कहा, ‘नाथूराम का मानना था कि हिंदुओं पर कई अत्याचार होने के बावजूद RSS पर्याप्त रूप से आक्रामक रुख नहीं अपना रहा था। हालांकि उन्होंने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ भाग्यपुर में 1938-39 में ‘मुक्ति संग्राम’ में हिस्सा लिया था। नाथूरामजी इस्लामिक राज्य के पूरी तरह खिलाफ थे, जो निजाम हैदराबाद में स्थापित करना चाहते थे। RSS के साथ मतभेदों के बावजूद नाथूराम का माना था कि निजाम के शासन के खिलाफ स्वयंसेवकों के संघर्ष को समर्थन देने की जरूरत है।
नाथूरामजी स्वयंसेवकों के उस पहले वर्ग का हिस्सा थे, जिसे संघ ने हैदराबाद में हिंदू परिवारों की पहचान और उन्हें एकजुट करने के लिए एक परियोजना के तौर पर बनाया था। वह एक समाचार पत्र को लेख भेजते थे और उनमें से कई प्रकाशित हुए थे। ऐसे बहुत से लेख हमारे परिवार ने संभाल कर रखे हैं।’ RSS यह कहता रहा है कि महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे ने 1949 में इस हत्या को अंजाम देने से काफी पहले संगठन छोड़ दिया था।

हालांकि गांधी की हत्या के मामले में एक अन्य आरोपी रहे नाथूराम के छोटे भाई गोपाल गोडसे ने 1994 में कहा था कि तीनों गोडसे बंधु- नाथूराम, दत्तात्रेय और गोपाल RSS का हिस्सा थे और उन्होंने संगठन को नहीं छोड़ा था। सात्यकी सावरकर ने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि नाथूराम सहित गोडसे बंधु कई वर्षों तक RSS के सदस्य थे।

उन्होंने बताया, ‘1940 के दशक में नाथूरामजी ने RSS और हिंदू महासभा, दोनों की निंदा की थी और हिंदू राष्ट्र दल के नाम से अपना संगठन बनाया था, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व शिविर आयोजित करना जारी रखा था। उनके एक पुरानी सहयोगी के अनुसार, 1943 में बारामती में RSS के शिविर के जैसा ही एक आयोजन किया गया था। यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने वास्तव में कब संघ को छोड़ा था, लेकिन वह निश्चित तौर पर संगठन से नाराज थे। 1946 में उन्होंने हिंदू महासभा को भी छोड़ दिया था क्योंकि उन्होंने महसूस किया था कि वह विद्रोह चाहते हैं और उसे संवैधानिक तरीकों से नहीं किया जा सकता।’

गोपाल गोडसे के पौत्र सात्यकी एक सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं और अब वह वास्तविक हिंदू महासभा को फिर से शुरू कर रहे हैं। हिंदू महासभा की स्थापना हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर ने की थी। सात्यकी ने बताया, ‘मैंने बचपन में RSS की शाखाओं में हिस्सा लिया है। मेरे पूर्वज ही नहीं, बल्कि मेरे कुछ चचेरे भाई भी RSS के साथ थे। हालांकि मेरा मानना है कि RSS अब सेवा और सांस्कृतिक जुड़ाव से संबंधित है। वह राजनीतिक अधिकारों के लिए हिंदुओं को एकजुट करने और ताकतवर बनाने के सावरकर के मूल संदेश को भूल गया है। सावरकर का हिंदुत्व RSS के हिंदुत्व से अलग है।’