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कैदियों की अमानवीय हालत पर SC खिन्न

supreme-court03नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से जेलों में कैदियों की संख्या कम करने और उनकी हालत सुधारने से संबंधित अपने आदेश का पालन सुनिश्चित करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि यह बात निराशाजनक है कि विचाराधीन कैदियों और दोषियों के बुनियादी हक और मानवाधिकारों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

जस्टिस एम बी लोकुर और जस्टिस आर के अग्रवाल की बेंच ने कहा, ‘हम इस बात को जानकर खिन्न हैं कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार समेत कुछ केंद्रशासित प्रदेशों और राज्यों द्वारा इस संबंध में बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है या बिल्कुल नहीं दिया जा रहा। हालांकि यह अदालत कई मौकों पर कह चुकी है कि विचाराधीन और दोषी दोनों कैदियों के कुछ मौलिक अधिकार और मानवाधिकार होते हैं।’

कोर्ट ने कहा, ‘लोग जैसे भी हों, केवल उनके प्रतिकूल हालात की वजह से उनके मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों की निश्चित रूप से अनदेखी नहीं की जा सकती।’ बेंच ने गृह मंत्रालय से इस संबंध में 5 फरवरी, 6 मई और 30 सितंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के पालन के संबंध में राज्यों से स्टेटस रिपोर्ट मंगाने को कहा।
बेंच ने कहा, ‘गृह मंत्रालय से जानकारी एकत्रित की जानी चाहिए और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और न्यायमित्र से साझा की जानी चाहिए ताकि कैदियों के अधिकारों को भी महत्व मिले, चाहे वे दोषी हों या विचाराधीन। 18 अक्तूबर, 2016 को अगली सुनवाई से पहले तक जरूरी कार्रवाई होनी चाहिए।’