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कांग्रेस की आर्थिक नीति का विरोध करते-करते बीजेपी बनी उसी में चैम्पियन

नई दिल्ली। विडंबना देखिए कि 2014 के लोकसभा चनावों में प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार को आर्थिक नीतियों पर जमकर कोसा. प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने विकल्प के तौर पर कांग्रेस से उलट आर्थिक नीति की पेशकश की और सत्ता पर काबिज हुई. विडंबना यह कि 1980 में बनी इस पार्टी के पास कोई स्पष्ट आर्थिक नीति नहीं थी और अब लगभग चार साल तक सत्ता पर काबिज रहने के बाद विकल्प देना तो दूर कहा जा सकता है कि दोनों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी की आर्थिक नीति में कोई अंतर नहीं है.

भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस की सामाजिक और आर्थिक नीतियों का विरोध करते हुए उसे कमजोर विकास दर और भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार ठहराने का काम किया है. जहां कांग्रेस की आर्थिक नीतियां सार्वजनिक क्षेत्र को केन्द्र में रखते हुए देश में समाजवादी संरचना को बढ़ावा देने के लिए रहीं.

वहीं सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी बड़े आर्थिक सुधारों को केन्द्र में रखते हुए अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की पहल पर आधारित रही. लिहाजा, कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी को अपने कार्यकाल के दौरान असंगत निजीकरण करने का आरोप लगाती है.

अब विपक्ष वाली भारतीय जनता पार्टी और सत्ता वाली भारतीय जनता पार्टी की आर्थिक नीतियों का आंकलन करें तो देखने को मिलता है कि पार्टी की आर्थिक नीति में बड़ा फेरबदल दर्ज हुआ है. विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की जिन नीतियों का विरोध करती रही वहीं सत्ता में आने के बाद उन नीतियों का अनुसरण करने में उसे हिचक नहीं हुई. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी आर्थिक नीतियों की कई धाराएं प्रचलित है.

भारतीय जनता पार्टी की 1980 में स्थापना के वक्त पार्टी की आर्थिक नीति पूर्व की जनसंघ की तरह रही जहां राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और अन्य संबद्ध संगठनों की नीतियों को अपनाया गया. इस दौरान पार्टी ने स्वदेशी का नारा बुलंद करते हुए घरेलू उत्पादन पर जोर दिया और निर्यात में एक संरक्षणवादी नीति का पक्ष लिया. इसके साथ ही पार्टी ने कांग्रेस की उस औद्योगिक नीति का विरोध किया जिसके केन्द्र में सरकारी कंपनियों को रखा गया. लेकिन 1996 के चुनावों के दौरान पार्टी ने अपना रुख पूरी तरह बदला और संरक्षणवाद की जगह वैश्विकरण पर जोर देना शुरू कर दिया.

पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में प्राथमिक क्षेत्रों में बड़े विदेशी निवेश की बात कही. फिर 1998 में सत्ता पर काबिज होते ही पार्टी ने वैश्विकरण के पक्ष में अपनी नीतियों को और पुख्ता कर लिया. इसके चलते भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बड़ी संख्या में विदेशी कंपनियों का भारत में आगमन हुआ. खास बात यह है कि जहां आरएसएस और अन्य संबद्ध संगठन (स्वदेशी जागरण मंच) इन नीतियों के विरोध में रहे, भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद इनका विरोध शांत हो गया.

आर्थिक नीतियों में इस बदलाव के बाद विपक्षी दल और खासतौर पर वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप मढ़ा कि उसकी नीतियां अमेरिका और विश्व बैंक को खुश करने की नियत से निर्धारित की गई हैं. हालांकि इस दौर में आरएसएस ने भी भारतीय जनता पार्टी पर स्वदेशी के मुद्दे से मुकरने का आरोप लगाया. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली 1998 से 2004 तक दो सरकारों के कार्यकाल के दौरान सरकारी कंपनियों का बड़े स्तर पर निजीकरण करने का काम किया साथ ही कई क्षेत्रों में अविनियमन किया. इस दौरान पार्टी ने विदेशी कंपनियों का भारत में आने का रास्ता भी साफ करने की महत्वपूर्ण पहल की. हालांकि भारतीय जनता पार्टी के ये फैसले 1991 में कांग्रेस पार्टी द्वारा आर्थिक उदारीकरण की नीतियों पर चलने के फैसले को केन्द्र में रखने हुए किया गया. इस फैसला का नतीजा भारतीय जनता पार्टी को देखने को मिला और उसके कार्यकाल के दौरान जीडीपी विकास दर में अच्छी रफ्तार दर्ज हुई.

इसी नतीजे को आधार बनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले शाइनिंग इंडिया का मसौदा रखा. इस मसौदे के साथ पार्टी ने अपनी नीति भी स्पष्ट की कि मुक्त व्यापार के जरिए ही समाज के सभी क्षेत्र उन्नत कर सकेंगे. आर्थिक नीति में यह बदलाव सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर देखने को नहीं मिला. भारतीय जनता पार्टी शाषित प्रमुख राज्यों में भी इस नीति पर पहल हुई और इसका भी नतीजा रहा कि पार्टी द्वारा शाषित राज्यों में विकास दर में अच्छी बढ़त देखने को मिली.

इसके बाद 2004 से लेकर 2014 तक एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में बैठी. इस दौरान एक बार फिर पार्टी ने कांग्रेस की आर्थिक नीतियों का विरोध शुरू किया. बात देश में एक कर व्यवस्था लागू करने की हो तो पार्टी ने कांग्रेस के मसौदे को पूरी तरह नकार दिया. या फिर कांग्रेस सरकार द्वारा इनकम टैक्स में इजाफे की पहले हो तो इनकम टैक्स की व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करने की दलील दी गई. लेकिन 2014 में जब पार्टी सत्ता में वापसी करती है तो उसी जीएसटी को सबसे बड़े सुधार के तौर पर लागू किया गया. वहीं बीते चार साल के कार्यकाल के दौरान इनकम टैक्स को खत्म करने की दलील तो दूर सरकार की कमाई बढ़ाने के लिए लगातार टैक्स दायरे को बढ़ाने का काम किया गया. लिहाजा, यह कहा जाए कि सत्ता में बैठी कांग्रेस और बीजेपी की आर्थिक नीति में कोई अंतर नहीं है तो इसके पक्ष में मजबूत तर्क सरकार ने कार्यकाल के दौरान पेश किया है.