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एक राष्ट्र-एक कर हॊ गया, एक राष्ट्र-एक चुनाव हॊने जा रहा है लेकिन एक राष्ट्र-एक कानून कब हॊगा? जाति के आधार पर आरक्षण कब मिटेगा?

आज़ादी के 70 साल बाद आज देश पहली बार एक सूत्र में बंधता हुआ दिखाई दे रहा है। देश में एकता की भावना जाग रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक मोदी जी ने देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए “सब का साथ, सबका विकास”; “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का न केवल नारा दिया अपितु उसे कार्य रूप में लाने के अथक प्रयास भी किये। उनके प्रयासों के कारण ही आज देश एक बार फिर ‘एकता में बल है’ की ऒर झुकता हुआ नज़र आ रहा है।

भारत को आर्थिक संकट से उभारने के लिए और विश्व पटल पर आर्थिक रूप से सबल देश के रूप में प्रस्तुत करने के लिए मोदी जी कड़े से कड़े निर्णय ले रहे हैं। पहले उन्होंने अलग अलग पेश होनेवाली रेल्वे बजट और आम बजट को एक ही बार में सदन में पेश करने की दिशा में काम किया। इससे दो दो बार बजट पेश करने से हॊनेवाली करोड़ों रूपये के खर्च का बचत हुआ। फरवरी महीने के आखिर में पेश होने वाली बजट को फरवरी के पहले हफ़्ते में पेश किया गया तांकि विकास के कार्यक्रमों में तेज़ी ला सके।

इसके बाद देश को भिन्न-भिन्न कर के जंजाल से मुक्ती दिलाने के लिए एक देश-एक कर को देश भर में लागू किया गया। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी के एक कर द्वारा पूरे देश की जनता को तरह तरह के कर के बोझ से मुक्ती दिलवाई। अटल जी के सरकार द्वारा पहल की गयी इस यॊजना को कार्य रूप में लाने के लिए तेरह साल लग गये। लेकिन खुशी की बात यह है की देर से आये मगर दुरुस्त आये। जीएसटी नामक पेड़ का लाभ भले ही अब न नज़र आये लेकिन आनेवालों दिनों में निश्चत ही इसका मीठा फल हमें चखने को मिलेगा।

फिलहाल देश में लॊकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग अलग समय में हो रहे हैं। देश में अलग-अलग समय में अलग-अलग राज्यों में बार बार चुनाव होने से देश के ऊपर अतिरिक्त आर्थिक बॊझ बढ़ रहा है। वर्ष 2014 में लॊकसभा चुनाव के लिए करीब 3500 करोड़ रूपये खर्च हुए थे। ज़ाहिर सी बात है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में खर्च और अधिक बढ़नेवाला है। अब विधानसभा चुनावों में करीब 300 करोड़ रूपये खर्च किये जाते हैं। भारत जैसे बड़े देश में हर राज्य के ऊपर लगभग 300 करोड़ रूपए हर पांच साल में खर्च होते रहेंगे तो विकास के कामों के लिए पैसा कहां से ले आयेंगे। इससे न केवल पैसों की अपितु समय की भी बरबादी होती रहेगी।

अगर एक देश एक चुनाव होते हैं तो सरकार पर पढ़नेवाला अतिरिक्त आर्थिक बोझ कम हॊ जायेगा और देश के विकास के गती में तेज़ी आएगी। देश में सबका साथ और सबका विकास हॊना है तो देश के हित में कड़े  निर्णय लेना ही होगा। एक देश-एक कर, एक देश-एक चुनाव लागू किया जा सकता है तो एक देश-एक कानून भी होना चाहिए। देश का एक ही धर्म ग्रंथ हैं और वो है देश का संविधान। देश में रहनेवाले हर व्यक्ति के लिए कानून एक समान हॊना चाहिए। किसी भी धर्म ग्रंथ की आड़ में कॊई भी व्यक्ति या समुदाय खुद को देश के संविधान और कानून से ऊपर नहीं रख सकता। देश में हर नागरिक के लिए समान नागरिक संहिता होना चाहिए। देश में एक कर, एक चुनाव हो सकते हैं तो कानून भी एक ही होना चाहिए।

देश की संपत्ति पर सब का समान अधिकार है। जाति के नाम पर किसी एक को अधिक अधिकार और सौलभ्य देना संविधान का अपमान है। जात्यातीत देश में जाति के आधार पर आराक्षण देना अपराध है। जातिवाद का आरक्षण देश के लिए अभिशाप है और देश के विकास में गतिरॊध उत्पन्न करता है। देश में जाति के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण को हटाकर व्यक्ति की बुद्दिमत्ता और उसकी आर्थिक परिस्थिती के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए। देश को कर के जंजाल से मुक्त कराया जा सकता है तो जातिवाद के जंजाल से मुक्त क्यॊं नहीं किया जा सकता? देश का विकास अगर करना है तो देश के प्रत्येक नागरिक का विकास करना हॊगा। एक देश है तो देश का कानून भी सब के लिए एक हो।

देश के युवाओं का बड़ा तबका जाति के आधार पर दिये जानेवाले आरक्षण से परेशान हो चुका है। देश के बहुसंख्यक जनता अल्पसंख्यक तुष्ठिकरण नीती से तंग आ चुकी हैं। देश को विकास के पथ पर लाने के लिए देश में कड़े निर्णय लेकर उन्हें सख्ती से लागू करना ही होगा। मुठ्ठी भर गद्दार और विरॊधियों के चिल्लाने से मोदी जी अपने मक्सद से पीछे नहीं हटेंगे यह तो तय है। आशा करते हैं कि जल्द ही एक देश-एक कानून भी लागू होगा और देश जाति के आधार के आरक्षण के अभिशाप से भी मुक्त हॊ जायेगा।