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उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी के बयान पर मुस्लिम समाज में भी अलग-अलग राय

नई दिल्ली। देश के अलग-अलग हिस्सों से मैं जो सुनता हूं , मैंने बेंगलुरु से भी वही सूना. दूसरे हिस्सों से भी ऐसी ही बातें सामने आई है. उत्तर भारत से ऐसी बाते ज्यादा सुनने को मिलती है. अल्पसंख्यकों में असहजता की भावना और असुरक्षा  की भावना बढ़ रही है. गुरुवार को अपने कार्यकाल के आखिरी दिन उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यह सवाल उठाया. हामिद अंसारी के इस बयान पर नवनिर्वाचित उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कड़ा इतराज़ जताया.

वेंकैया ने कहा कुछ लोग राजनीतिक वजहों से कुछ घटनाओं को ज्यादा तूल दे देते हैं. नायडू ने कहा कि जनता में जाग्रति पैदा करने और समाज में मार्गदर्शन करने के लिए सभी को मिलकर आगे बढ़ना होगा. विविधता में एकता भारत की विशेषता है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग राजनीतिक वजहों से कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहे हैं. इस पूरे मामले पर हमारे संवाददाता एम.अतहरउद्दीन मुन्ने भारती ने मुस्लिम समाज के विद्वानों और सियासी लोगों से उनकी राय जानी….

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मोहम्मद अली रफत.

 तेलंगाना में 2016 में आईएएस से रिटायर्ड मोहम्मद अली रफत का मानना है की हामिद अंसारी साहब ने जो बात कही है, अगर उसमें सच्चाई है तो उस पर क्यों टिप्पणी की जाए. उन्होंने कहा कि क्या सच बोलने पर टिप्पणी की जाती है और जो लोग टिप्पणी कर रहे हैं उनको चाहिए कि वे उन लोगों की निंदा करें जिन्होंने देश के माहौल को बिगाड़ दिया है. अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पर क्यों नहीं टिप्पणी करते? प्रधानमंत्री भी एक संवैधानिक पद पर हैं. गौरक्षकों द्वारा लोगों के मारे जाने पर एक महीने बाद प्रधानमंत्री कहते हैं कि ये नहीं होना चाहिए. गांधी जी रहते तो इस बात को पसंद नहीं करते, लेकिन आखिर लोगों ने उनकी बात को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? तभी हामिद अंसारी साहब को संवैधानिक पद पर रहते हुए इस बात को रखा.
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 ज़किया सुमन.

सरकार को हामिद साहब के बयान को गंभीरता से लेना चाहिए: ज़किया सुमन 
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की अध्यक्ष ज़किया सुमन कहती हैं कि हामिद अंसारी साहब के बयान में एक दर्द है , पीड़ा है, जिसे सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए. उनके सवालों में दम है, जिसपर गौर करने की ज़रूरत है. सुमन कहती हैं कि 1947 से लेकर अब तक हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. मुसलमानों की सियासत में कोई दमदार आवाज़ अभी तक नहीं है. प्रधानमंत्री द्वारा सबका साथ-सबका विकास के नारे को अमल में लाने की ज़रूरत है. सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय आज गरीबी, बेरोज़गारी और अशिक्षा का शिकार हो रहा है. आज विकास में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए ठोस उपाय ज़रूरी है.

हालात खराब थे तो हामिद साहब ने कुर्सी क्यों नहीं छोड़ी : फ़ौज़ान अल्वी 
मीट एक्सपोर्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता फ़ौज़ान अल्वी हामिद अंसारी साहब के बयान पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर ये हालात बद से बद्दतर नज़र आ रहे थे तो अपने संवैधानिक कार्यकाल के दौरान उन्होंने कुर्सी क्यों नहीं छोड़ी. साथ ही उन्होंने न ही मज़बूती के साथ इस बात को किसी मंच पर उठाया. हिन्दुस्तान में ऐसा नेता कब आएगा जब उसको हालात ख़राब नज़र आते ही अपनी संवैधानिक कुर्सी को त्याग कर समाजसेवा और सुधार कार्य में समर्पित हो. अल्वी का मानना  है की जब बाबरी मस्जिद शहीद होने के देश भर में दंगे होने लगे तो सिर्फ सुनील दत्त ने ही अपने पद से त्यागपत्र देने की हिम्मत जुटाई थी. उस वखत भी दर्जनों मुसलमान सांसद सदन में मौजूद थे.

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 हिलाल अहमद.

हामिद अंसारी ने महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को निभाया: हिलाल अहमद
सीएसडीएस में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हिलाल अहमद ने कहा की हामिद अंसारी साहब ने अपने महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को निभाया. उनकी एक ज़िम्मेदारी उप-राष्ट्रपति की हैसियत से थी कि वह सरकार और समाज के बीच में जो संवैधानिक तालमेल की ज़रूरत होती है उसकी तरफ उन्होंने इशारा किया. उनकी दूसरी ज़िम्मेदारी एक विद्वान और बौद्धिक व्यक्ति की थी, जिसे निभाते हुए उन्होंने यह कहा कि समाज के कुछ खास तबक़ों में बेचैनी का माहौल है. इसकी जवाबदेही चुनी हुई सरकार पर है. इस तरह हामिद अंसारी ने न सिर्फ उप-राष्ट्रपति पद की गरिमा को बढ़ाया, बल्कि अपनी बौद्धिक योग्यता के ज़रिये सत्ता और समाज दोनों को एक साफ़ संकेत दिया. ये ज़रूरी है की हामिद अंसारी के नाम और उनके दिए गए तर्क में फर्क करके देखा जाना चाहिए.

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 मुफ़्ती मुकर्रम.

अंसारी साहब को मजबूरन यह कहना पड़ा: मुफ़्ती मुकर्रम 
प्रख्यात मुस्लिम धर्मगुरु मुफ़्ती मुकर्रम का कहना है की हामिद अंसारी साहब का बयान किसी हद तक ठीक है. बहैसियत संवैधानिक पद पर रहते हुए कहना गंभीरता को दर्शाता है. काफी दिनों से इस हालत का जायज़ा लेने के बाद मजबूरन इस बात को उन्हें कहना पड़ा. यक़ीनन देश के हालात काफी दिनों से बिगड़ रहे हैं. हुकूमत की तरफ से जो बयान दिए जा रहे हैं, उसका कोई असर नहीं दिख रहा है. प्रधानमंत्री को भी एक-एक बात कई दफे कहना पड़ रहा है. उसके बावजूद गौरक्षकों के हमले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. इसका मतलब है कि प्रधानमंत्री की बात को लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. यह माहौल देश के अंदर विकास को नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे भारत की विदेशों में बदनामी हो रही है.

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 क़ासिम रसूल.

हामिद अंसारी की बात में दम है : क़ासिम रसूल
वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर क़ासिम रसूल इलियास ने कहा कि यह बात देश के उपराष्ट्रपति की तरफ से आई है तो ये इशारा कर रही है कि इस सच्चाई में दम है. यह बात अब तक हम लोग कहते आ रहे थे तो कहा जाता था कि मुसलमानों का मामला है. हमारी हुकूमत तो 125 करोड़ लोगो की हुकूमत है और उनका नारा ही था, सबका साथ सबका विकास. अगर हुकूमत के एक संवैधानिक पद पर रहने वाला दूसरा बड़ा आदमी ये बात कह रहा है तो हुकूमत को इसको संजीदगी से लेना चाहिए.

बयान पर कड़ी आपत्ति जताई
भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन ने हामिद अंसारी के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा है कि मुस्लिम समुदाय के लिए भारत दुनिया का सबसे अच्छा देश है, साथ ही हिन्दू उनके सबसे अच्छे दोस्त. वहीं, जनता दल (यू) के सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि सरकार को हामिद अंसारी के बयान को गंभीरता से लेना चाहिए. अली अनवर ने कहा की जिस देश में दाढ़ी और टोपी को देखकर ट्रेन से खींचकर मारा जाता है, तो फिर स्थिति को और बताने की  ज़रूरत ही नहीं है.

VIDEO : देश में अल्पसंख्यकों में असहजता की भावना है- हामिद अंसारी

सरकार को हामिद साहब के बयान पर गौर करना चाहिए : मीम अफ़ज़ल
कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफ़ज़ल का मानना है कि हामिद अंसारी साहब ने जो कुछ भी कहा है वो बिल्कुल सही है. हामिद अंसारी बहुत ज़िम्मेदारी के साथ-साथ बहुत अहम ओहदों पर क़ायम रहे हैं. उन्होंने इस संवैधानिक पद की गरिमा का ख्याल रखा है. अब जब वह रिटायर्ड हो रहे हैं उस समय जो बात कही है उसपर सरकार को संजीदगी से गौर करना चाहिए.