Breaking News

उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड के एमडी एपी मिश्रा की योगी ने तलब की फाइल, डरकर मिश्रा जी ने दिया इस्तीफा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड(यूपीपीसीएल) में भ्रष्टाचार की पोल खुली तो  एक्शन की आशंका पर एमडी एपी मिश्रा ने गुरुवार शाम इस्तीफा दे दिया। दरअसल गुरुवार को खबर प्रकाशित हुई-योगी जी यूपीपीसीएल में दौड़ रहा भ्रष्टाचार का करंट। इसे संज्ञान में लेते हुए  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एपी मिश्रा की नियुक्ति से जुड़ी फाइल तलब कर ली। अपने खिलाफ एक्शन की आशंका पर एपी मिश्रा ने शाम को इस्तीफा दे दिया।  पढ़िए एक दिन पूर्व प्रकाशित वह खबर, जिसे मुख्यमंत्री योगी ने संज्ञान में लिया।

मायावती के राज में नवनीत सहगल के दम पर यूपी के पॉवर कारपोरेशन मे घुसे एपी मिश्रा ने खूंटा गाड़ दिया। 2012 में सत्ता बदली मगर एमडी की कुर्सी हिली नहीं। अब मिश्रा लगातार तीसरी सत्ता के साक्षी बने हैं। साफ-स्वच्छ छवि के सीएम अखिलेश पर भी न जाने कौन सा जादू मारा कि वे भी फैन हो गए। मिश्राजी रिटायर हो चुके हैं, मगर उन्हें एक नहीं तीन बार एक्सटेंशन(सेवाविस्तार) दिया गया।

तीसरी दफा उन्हें एक्सटेंशन इसी जनवरी में मिला। इस मोहब्बत की वजह अखिलेश ही बता सकते हैं। काबिल अफसर की तलाश तक किसी को एक बार सेवा विस्तार समझ में आता है, मगर तीन बार सेवा विस्तार पर सवाल उठना लाजिमी है। दो ही मतलब है-या तो अफसर बहुत काबिल होगा या फिर नाक का बाल होगा। अब मिश्राजी की काबिलियत सुनिए। बतौर एमडी वे रिलायंस और बजाज से पांच रुपये प्रति यूनिट की बिजली खरीदते हैं और आगरा की निजी कंपनी टोरंट को महज ढाई रुपये प्रति यूनिट के रेट पर बेचते हैं। जनता के पैसे से अंबानी का खजाना भर रहे।

यह तो सिर्फ एक नमूना रहा। मिश्रा के राज में भ्रष्टाचार का करंट खूब दौड़ रहा। मांग और आपूर्ति के बीच पैदा गहरी खाई के बीच निजी घरानों से बिजली खरीद में वारा-न्यारा हो रहा। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल चिल्ला रहे कि केंद्रीय बिजली घरों की क्षमता बढ़ गई है। रियायती रेट पर बिजली ले-लो, बिजली ले लो, मगर यूपी के अफसर सुनने वाले नहीं। सूबे में दोगुने कीमत पर निजी घरानों से खरीद हो रही।  हालांकि अब तक चल रहे इस खेल में मिश्राजी ही नहीं बल्कि उऩके चेयरमैन से लेकर विभागीय मंत्री सब शामिल रहे। अब बड़ा सवाल है क्या योगी सरकार में यह करप्शन बंद होगा। आइए सुनिए यूपीपीसीएल में  भ्रष्टाचार की कहानी।

यूपीपीसीएल में घपला कुछ यूं चल रहा। यूपी के सवा करोड़ बिजली उपभोक्ताओं का घर रौशन करने के लिए 25 हजार मेगावाट बिजली चाहिए। मगर सूबे के पॉवर प्लांट तीन हजार मेगावाट ही बिजली पैदा कर पा रहे। केंद्रीय बिजली घरों से औसतन पांच हजार मेगावाट बिजली यूपी को मिल रही। सरकारी संयंत्र से 2.31 रुपये तो केंद्रीय बिजली संयंत्रों से तीन रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है। केंद्र और राज्य के सरकारी संयंत्र मिलकर भी सिर्फ आठ हजार मेगावाट बिजली की सप्लाई कर पाते हैं। चाहिए 25 हजार मेगावाट और व्यवस्था हो पाती है आठ हजार मेगावाट। बस मांग और आपूर्ति के बीच इसी चौंड़ी खाई के बीच अरबों का भ्रष्टाचार पनप रहा।

पूरा खेल अब तक सपा-बसपा के ऊर्जा मंत्री और विभागीय नौकरशाह खेल रहे हैं। बिजली संकट दूर करने के लिए बाकी जरूरत की बिजली रिलायंस और बजाज जैसी निजी कंपनियों से दो गुना रेट पर खरीदी जा रही। दोनों निजी कंपनियां यूपी को पांच से छह रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली दे रही। जो कि सरकारी रेट का दोगुना है। कुछ साल पहले सीएजी ने जब ऑडिट की थी तो निजी घरानों से खरीद मे करीब दस हजार करोड़ रुपये के घोटाले की ओर इशारा किया था। आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 के बीच रिलायंस और बजाज से करीब 6600 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी गई। अंदाजा लगाया जा सकता है जब एक सीजन का यह हाल है तो पिछले दस वर्षों में कितना पैसा कमीशन के रूप में विभागीय मुलाजिमों की जेब में गया होगा।

जब बिजली विभाग का 40 हजार करोड़ रुपये बकाया हो। माली हालत इस कदर खराब हो कि उसे बैंक भी कर्जा देने से मना करते हों,  तब फिर ऊंची कीमत पर निजी घरानों से बिजली खरीदने के बजाए नए बिजली घरों की स्थापना क्यों नहीं हो रही। पांच से छह रुपये की बिजली रिलायंस और बजाज से खरीद कर उसे ढाई रुपये पर सरकार बेच रही। इतना घाटा क्यों सहा जा रहा है।

इसकी जड़ मे हैं कमीशनखोरी। मंत्रई और विभागीय अफसर ही नहीं चाहते कि यूपी में बिजली का आधारभूत ढांचा सुधरे। नए कारखाने लगे। बल्कि वे चाहते हैं कि मांग और आपूर्ति की खाई लगातार चौड़ी रहे और जिससे उन्हें निजी घरानों से बिजली खरीदने का मौका मिलता रहा। अगर सरकारी बिजली घरों की स्थापना होती। नए कारखाने लगतो तो बिजली का उत्पादन बढ़ता। मांग और आपूर्ति की खाई भी दूर होती। इससे निजी घरानों से बिजली खरीदने की जरूरत न होती या फिर कम होती। जब ऐसा होता तो फिर कमीशन कैसे मंत्रियों और विभागीय अफसरों का बनता।

यही वजह है कि पिछले दो दशक से यूपी में जितनी भी सरकारें आईं उन्होंने जानबूझकर सूबे की व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने दी। सूबे में बिजली संकट से निपटने का हवाला देकर निजी घरानों से ऊंचे रेट पर बिजली खरीदने का खेल चल रहा। चौंकाने वाली बात है कि वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड का विघटन करके पांच अलग कंपनियां बनाईं गईं। उस समय सरकार ने बिजली बोर्ड का सारा घाटा अपने सिर उठा कर बैलेंस शीट शून्य कर दिया था। ताकि बिजली महकमे की आर्थिक हालत फिर से सुदढ हो सके।

मगर भ्रष्टाचार का हाल यह रहा कि पिछले डेढ़ दशक में फिर  विद्युत निगम करीब 50 हजार करोड़ के घाटे में चला गया है। बता दें कि बसपा सरकार में 10 बिजली घरों के स्थापित होने की बात हुई थी, मगर मामला कागज से जमीन पर नहीं उतर सका।