नई दिल्ली । इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को फंसाने की पूरी तैयारी हो गई थी। घटना में शामिल आरोपियों से इसके लिए बयान भी ले लिए गए थे और शाह से सीबीआइ दो बार पूछताछ भी कर चुकी थी। लेकिन राजनीतिक हवा का रूख देखकर सीबीआइ आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और 2014 के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के ठीक पहले उसने अदालत में अमित शाह को क्लीनचिट दे दी।
जुलाई 2013 में दाखिल पहले आरोपपत्र में सीबीआइ ने साफ कर दिया था कि लोकसभा चुनाव के पहले अमित शाह के खिलाफ सीबीआइ एक और आरोपपत्र दाखिल कर देगी। इसके बाद अमित शाह से दो बार पूछताछ कर सीबीआइ ने अपने मंसूबे का संकेत भी दे दिया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में संप्रग सरकार की हार के अंदेशे ने सीबीआइ को रोक दिया। फरवरी 2014 में दाखिल पूरक आरोपपत्र में सीबीआइ ने आइबी के चार अधिकारियों को तो आरोपी बनाया और उनके खिलाफ अभियोग चलाने के लिए गृहमंत्रालय से अनुमति भी मांगी, लेकिन अमित शाह को लेकर इसमें वह चुप्पी साध गई। अमित शाह को क्लीनचिट सीबीआइ ने सात मई 2014 को उस समय दी, जब केवल एक चरण का चुनाव बाकि था और राजग सरकार की जीत लगभग सुनिश्चित मानी जा रही थी।
जैसा कि आइबी के पूर्व विशेष निदेशक राजेंद्र कुमार ने नरेंद्र मोदी को फंसाने के लिए प्रलोभन देने का खुलासा किया है, अमित शाह के खिलाफ एनकाउंटर के पहले और बाद में आरोपियों के साथ फोन पर बातचीत को आधार पर बनाया गया। सीबीआइ का कहना था कि एक आरोपी आइपीएस जीएल सिंघवी से दो पेन ड्राइव मिला है, जिसमें अमित शाह कथित रूप से जांच को प्रभावित करने की रणनीति बनाते हुए नजर आते हैं। लेकिन इस सीडी की वैधता के बारे में सीबीआइ ने कुछ नहीं बताया। उस समय जांच से जुड़े सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी की माने तो यदि राजनीतिक हवा का रूख नहीं बदलता तो अमित शाह के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने की पूरी तैयारी कर ली गई थी।