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आम लोगों को मारने वाले अपने परिवार की बात न करें: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 1996 में दिल्ली के लाजपत नगर में हुए बम ब्लास्ट मामले में दोषी नौशाद को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि जो लोग इस तरह के गंभीर अपराध के दोषी हैं और आम लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं, वे कोर्ट से रहम की उम्मीद नहीं कर सकते।

कोर्ट ने कहा, ‘अगर आप इस तरह से आम लोगों को मारते हैं, तो आप अपने परिवार की बात कैसे कर सकते हैं।’ इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अगुवाई वाली बेंच के सामने हुई। लाजपत नगर बम ब्लास्ट मामले में दोषी नौशाद को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। नौशाद की बेटी का निकाह है और उसने इसमें शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी। 21 मई, 1996 को दिल्ली के लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट में हुए धमाके में 13 लोगों की मौत हो गई थी और 38 घायल हो गए थे।

नौशाद की ओर से दाखिल अर्जी में अंतरिम जमानत या फिर कस्टडी परोल दी जाने की मांग की गई थी। नौशाद के वकील सिद्धार्थ दवे ने दलील दी थी कि वह इस मामले में 20 साल जेल काट चुका है, लिहाजा कोर्ट को उनके साथ नरमी बरतनी चाहिए। इसके साथ ही वकील ने कहा कि वह एक्सप्लोसिव ऐक्ट से संबंधित मामले में तय सजा काट चुका है। हत्या की साजिश के मामले में वह सजा काट रहा है और अब तक 20 साल जेल में बिता चुका है।

वहीं सीबीआई की ओर से दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि ब्लास्ट केस में उम्रकैद की सजा को चुनौती दी गई है और फांसी की मांग की गई है। ऐसे में जमानत की अर्जी खारिज की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की दलील पर सहमति जताई और जमानत अर्जी खारिज कर दी।