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असली हीरो: किसानों की बेटियों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया

ajeetचेन्नै। महाराष्ट्र की सपना प्रकाश जगतप (22) के पिता कपास की खेती करते थे। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह इस सदमें और कर्ज से उबर पाएंगी। लेकिन पैसों की कमी उन्हें पढ़ाई जारी रखने से डरा न सकी और वह रास्ते खोजने में लगी रहीं। उनकी यह कोशिश तब रुकी जब उनकी मुलाकात अजीत सक्सेना से हुई। अजीत रेलवे में अधिकारी हैं और महाराष्ट्र के सेवाग्राम में युवा सहायकों के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने सपना की पढ़ाई का जिम्मा उठाया।

यवतमाल की रहने वाली सपना कहती हैं, ‘मेरे पिता की मौत के बाद उनके भाइयों ने हमारी जमीन ले ली। मेरी मां और बहनों को श्रमिकों की तरह काम करना पड़ा। मैं पैसा कमाना चाहती हूं ताकि मेरी मां को काम न करना पड़े।’ सपना ने हाल ही में चेन्नै के रगस मेडिकल कॉलेज से नर्सिंग की पढ़ाई पूरी की है। उनका कहना है, ‘मैं नर्स बनना चाहती हूं ताकि मैं अपने गांव में मेडिकल हेल्प दे सकूं जो आज भी इसमें पिछड़ा हुआ है।’ सपना के साथ महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों से आईं नौ और लड़कियों की भी अपनी-अपनी कहानियां हैं।

इनमें से अधिकतर लड़कियां अपने परिवार की पहली पीढ़ी हैं जो पढ़ती हैं। ये रोज करीब आठ किलोमीटर दूर पढ़ने जाती हैं। वार्दा जिले की शिल्पा चिंदूगी फुने कहती हैं, ‘मैं अपने गांव के स्कूल में विज्ञान से 12वीं पास करने वाली पहली स्टूडेंट थी। मैं और पढ़ना चाहती थी लेकिन पिता बीमार हो गए और मेरे लिए पढ़ाई मुश्किल हो गई।’

इन सभी लड़कियों को अजीत चेन्नै ले आए। वह कहते हैं, ‘2005 के आसपास मैंने किसानों की आत्महत्याओं के बारे में सुना। मुझे इससे गहरा सदमा पहुंचा। मुझे लगा कि हमें कुछ करने की जरूरत है।’ 2008 से अजीत ने गरीब परिवारों की करीब 200 लड़कियों की मदद की है। उनका कहना है, ‘महाराष्ट्र में अब मेरा एक हजार लोगों का परिवार है।’ बतौर रेलवे अधिकारी अजीत की चेन्नै में पोस्टिंग है, लेकिन वह बीच-बीच में महाराष्ट्र आते रहते हैं। उन्होंने स्कूल की फीस भरने से शुरुआत की थी जो अब करियर प्लानिंग के स्तर तक पहुंच गई है। उनकी कोशिशों का नतीजा है कि अब उनके साथ उनके आईआईटी के साथी और उद्यमी मित्र भी मदद के लिए आगे आए हैं।

मराठी बोलने वाली लड़कियों को यहां दक्षिण में लाने का कारण उनके इलाके में अच्छे कॉलेजों का न होना था। शिल्पा ने बताया, ‘निजी कॉलेज डोनेशन की बात करते हैं और सरकारी कॉलेज में बहुत ज्यादा अंकों की जरूरत होती है। इसलिए हमें महाराष्ट्र से बाहर आना पड़ा।’ अजीत ने कहा, ‘रगस स्कूल ऑफ नर्सिंग में सीटें थीं और यहां देरी से फीस देने के संबंध में बात हो गई थी।’

अजीत को इस बात का गर्व है कि ये लड़कियां नर्स बनकर वापस अपने इलाकों में जाना चाहती हैं जहां मुश्किल से ही प्राथमिक चिकित्सा केंद्र मिलते हैं।