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अखिलेश पर कभी हां-कभी ना: यह है मुलायम का माइंड गेम

लखनऊ। अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में बयानों और फैसलों को पलटना मुलायम सिंह यादव के लिए नई बात नहीं है। उनका राजनीतिक करियर ऐसे मौकों से भरा पड़ा है, लेकिन हाल के कुछ दिनों में मुलायम अपने बयानों से जितना पलटे हैं, वह उनके रेकॉर्ड के बावजूद हैरान करने वाला है। दो दिन पहले मुलायम ने कहा था कि वह समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने SP के कार्यकर्ताओं से अपील की थी कि वे कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ें। अब उन्होंने यू-टर्न लेते हुए कहा है कि वह ना केवल SP के लिए, बल्कि कांग्रेस के लिए भी चुनाव प्रचार करेंगे।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने मुलायम के इन यू-टर्न्स पर टिप्पणी की, ‘अपने फैसलों को सिर के बल पलट देना दिखाता है कि मुलायम बड़ी उलझन में हैं। उनके मन में कशमकश चल रही है कि वह अपने बेटे के साथ जाकर कांग्रेस का प्रचार करें या फिर कांग्रेस विरोधी स्टाइल के अपने समाजवाद पर अड़े रहें।’ 29 जनवरी को अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने लखनऊ में तीन घंटे का रोडशो आयोजित किया था। इसपर मुलायम बहुत बौखला गए और उन्होंने इस गठबंधन को ही नकार दिया। उनकी राजनीति को पहचानने वाले लोगों को उनके इस रुख से आश्चर्य नहीं हुआ। कांग्रेस के साथ गठबंधन का विरोध करने के उनके फैसले के बीज अतीत में हैं। एक विश्लेषक ने कहा, ‘उनकी पूरी राजनीति लोहिया के समाजवाद की नींव पर खड़ी है। इसीलिए अपने बेटे के फैसले को मानने की उनपर कोई शर्त नहीं थी।’

ऐसे में पिछले कुछ महीनों से लगातार खबर आ रही थी कि अखिलेश कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करना चाहते हैं। फिर दिसंबर में जब अखिलेश और राहुल-प्रियंका गांधी के बीच बढ़ती नजदीकियों के बारे में खबरें आने लगीं, तब से ही लगातार मुलायम इस गठबंधन का विरोध करते रहे। यादव परिवार के बीच बढ़ती तकरार और उठा-पटक के बीच 28 दिसंबर को मुलायम ने खुलकर कहा कि उनकी पार्टी अपने बूते चुनाव में जीत हासिल कर सकती है और इसीलिए उसे किसी के साथ गठबंधन करने की जरूरत नहीं है। यह पहला मौका है जब कांग्रेस और SP के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हुआ है। 1989-90 में राजीव गांधी ने मुलायम की अल्पमत सरकार को समर्थन दिया था। बाद में मुलायम ने UPA की पहली और दूसरी मनमोहन सरकार को समर्थन दिया। जब भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर लेफ्ट ने केंद्र से समर्थन वापस लिया, उस समय मुलायम ने ही सरकार बचाई।

स्थितियां तब बिगड़ीं जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत खराब होने लगी। जैसे-जैसे UP में कांग्रेस कमजोर हुई, SP की ताकत बढ़ी। मुलायम को पता था कि अगर वह कांग्रेस को जगह देते हैं, तो इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है। आजादी के बाद से लगातार 40 साल तक UP में कांग्रेस सबसे ज्यादा मजबूत थी। ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम तीनों ही उसका वोट बैंक बने रहे। मंडल और राम मंदिर लहर के दौर में कांग्रेस यहां कमजोर होने लगी। इसके बाद ही ब्राह्मणों ने BJP की ओर मुंह कर लिया, वहीं दलित मायावती की ओर मुड़ गए और मुस्लिम SP के खाते में चले गए। मुस्लिमों वोटर्स को अपनी ओर लुभाकर कांग्रेस की हालत और खराब करने में मुलायम का अहम योगदान रहा।

एक विश्लेषक ने कहा, ‘एक उदाहरण से हम जान सकते हैं कि मुस्लिम वोट UP में कितना अहम था। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुलायम और कल्याण सिंह साथ आए। मुस्लिम तबका कल्याण को बाबरी मस्जिद कांड का दोषी मानता है। उस समय मुस्लिमों ने बढ़-चढ़कर कांग्रेस को वोट दिया। नतीजन, कांग्रेस को UP में 22 सीटों पर जीत मिली।’ यह भी माना जाता है कि अगर कांग्रेस UP में मजबूत हुई, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान SP को ही होगा। 1999 में जब वाजपेयी सरकार गिरी, तब सोनिया ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। मुलायम के पास तब 32 सांसद थे। माना जाता है कि उन्होंने पहले सोनिया को साथ देने का भरोसा दिया, लेकिन बाद में इस वादे से मुकर गए। तब से ही दोनों दल एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं।

यही कारण था कि मुलायम के राजी होने के बाद भी सोनिया ने SP को UPA में शामिल नहीं किया था। SP उसे बाहर से समर्थन देती रही। इन सभी वजहों के कारण मुलायम कभी दिमागी तौर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार नहीं थे। ऐसे में अब उनके बदले हुए फैसले के देखकर हैरान होना स्वाभाविक है। उनकी ही पार्टी के एक नेता ने कहा कि यह उनके दिल और दिमाग का संघर्ष है। इस नेता ने बताया, ‘दिमागी तौर पर वह खुद को इस कांग्रेस-विरोध विचारधारा से अलग नहीं कर सकते हैं, लेकिन उनका दिल उनके बेटे के साथ है।’