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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवसः ‘ब्रेस्ट टैक्स’ के खिलाफ आवाज उठाने वाली नांगेली की दास्तान

brestचेरथला (केरल)। एक ओर जहां दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तैयारियां चल रही हैं, केरल के इस तटवर्ती शहर में लोग सौ साल पहले एक महिला के असाधारण बलिदान को याद कर रहे हैं। नांगेली ने ‘ब्रेस्ट टैक्स’ के बर्बर कानून के खिलाफ आवाज उठाकर अपना जीवन कुर्बान कर दिया था। यह वह दौर था जब सार्वजनिक तौर पर अपने स्तनों को ढक कर रखने की इच्छा रखने वाली महिलाओं से मुलक्करम या स्तन कर वसूला जाता था।

नांगेली का स्थानीय भाषा में मतलब होता है, ‘खूबसूरत।’ तकरीबन 30 के आस-पास की उम्र की नांगेली समाज के ‘निचले’ माने जाने वाले तबके से आती थी। उसने एक दिन तय किया कि त्रावणकोर के राजा द्वारा लगाए जाए अमानवीय कर नहीं अदा करेगी।

कन्नूर के एक कलाकार टी. मुरली ने बताया, ‘एक दिन जब स्थानीय कर अधिकारी (या परवथियार) बकाया ब्रेस्ट टैक्स वसूलने के लिए बार-बार नांगेली के घर आ रहा था तो उसने परवथियार को शांति से इंतजार करने के लिए कहा। नांगेली ने फिर केले का पत्ता सामने फर्श पर रखा, प्रार्थना की, दीप जलाया और फिर अपने दोनों स्तन काट डाले।’

चेरथला में नांगेली ने जिस जगह पर यह बलिदान दिया था, उसे मुलाचिपा राम्बु कहते हैं। मलयालम में इसका मतलब ‘महिला के स्तन की भूमि’ होता है। हालांकि स्थानीय लोग यह नाम लेने से हिचकते हैं। आजकल ज्यादातर लोग इसे ‘मनोरमा कवला’ कहते हैं। कवला का मतलब होता है जंक्शन।

नांगेली के बलिदान के बाद ब्रेस्ट टैक्स का बर्बर कानून हटा लिया गया। इस ऐतिहासिक घटना का जिक्र करते हुए मुरली कहते हैं, ‘चेरथला में हर कोई नांगेली की कहानी जानता है। नांगेली ने उस वक्त निचली जाति की महिलाओं के लगातार हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। उन्हें अपने स्तन ढकने के अधिकार के लिए टैक्स देना होता था। जितने बड़े स्तन होते थे, टैक्स की रकम उतनी ज्यादा होती थी।’

मुरली ने इस घटना का जिक्र करते हुए उदास कर देने वाली कई तस्वीरें बनाई हैं। उन्होंने और कई अन्य लोगों ने यह मांग भी की है कि सरकार को नांगेली के बलिदान को पहचान देनी चाहिए। उनका कहना है कि चेरथला में मुलचीपरम्बु के पास नांगेली का स्मारक बनाया जाए।

पास के अम्बलापुजा के एक सरकारी कॉलेज में पढाने वाले असिस्टैंट प्रफेसर और स्थानीय निवासी थॉमस वी. पुलिकल कहते हैं, ‘नांगेली जैसी बहादुर महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की सच्ची कहानियां सुनकर हम सब बड़े हुए हैं।’ उन्होंने बताया कि नांगेली के वंशज अभी चेरथला के पास ही रहते हैं। हालांकि कई साल पहले वे लोग मुलचीपरम्बु छोड़कर चले गए थे।

हमने मुरली के साथ मिलकर नांगेली के वंशजों को खोज निकाला। चेरथला में ही षष्ठम कवला के पास नेदुम्ब्रकाड में रहने वाली लीला अम्मा नांगेली की परपोती हैं। उनकी उम्र 67 साल है। लीला अम्मा बताती हैं, ‘नांगेली और उनके पति को कोई बच्चा नहीं था। मैं नांगेली की बहन की परपोती हूं। हमारे बड़े बुजुर्ग बताया करते थे कि वह कितनी खूबसूरत थीं और वह दर्दनाक घटना कैसी हुई। अच्छा होगा कि लोग उन्हें याद करेंगे।’

नांगेली की झोपड़ी अभी भी वही पर है। उसके पास एक तालाब है जिसके एक किनारे पर दो बड़ी इमारतें बन गई हैं।